सरसों की खेती से किसानों को होंगी बंपर कमाई, जाने इसकी उन्नत किस्में और खेती के बारे में


सरसों की खेती से किसानों को होंगी बंपर कमाई, जाने इसकी उन्नत किस्में और खेती के बारे में सरसों यह एक रबी की फसल होती है। देश के कई राज्यों में इसकी खेती बहुत ज्यादा की जाती है जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में इसकी खेती काफी ज्यादा की जाती है। इसके तेल की मार्किट में काफी ज्यादा डिमांड रहती है।

इसकिये किसान इसकी खेती से दुगने पैसे कमा सकता है। सरसों की फसल तीन से चार माह में पक कर तैयार हो जाती है। सरसों की बोवनी का काम अक्टूबर माह में पूरा कर लेना अच्छा रहता है। जानते है इसकी खेती से फायदे,

सरसों की खेती से किसानों को होंगी बंपर कमाई, जाने इसकी उन्नत किस्में और खेती के बारे में

खेती के लिए जलवायु

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भारत में सरसों की खेती शरद ऋतु में की जाती है। इस फसल के अच्छे उत्पादन के लिए 18 से 25 डिग्री ताप की आवश्यकता होती है, सरसो की फसल में फूल अवस्था में यदि वर्षा अधिक आद्रता तथा बादल छाये रहना, फसल के प्रति सहनसील होते है।

खेती के लिए मिट्टी –

वैसे तो इसकी खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इस खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। यह फसल हल्की क्षारीयता की बहुत जल्दी सहन कर लेती है।

सरसों की उन्नत किस्में-

आर एच 30 : सिंचित व असिचित दोनो ही स्थितीयों में गेहूं, चना एवं जौ के साथ खेती के लिए उपयुक्त.

टी 59 (वरूणा):- इसकी उपज असिंचित क्षेत्र में 15 से 18 हेक्टेयर होती है. इसमें तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है.

पूसा बोल्ड:- आशीर्वाद (आर. के. 01से 03) : यह किस्म देरी से बुवाई के लिए (25 अक्टुबर से 15 नवम्बर तक) उपयुक्त पायी गई है.

अरावली (आर.एन.393):- सफेद रोली के लिए मध्यम प्रतिरोधी है.

खेत की तैयारी कैसे करे –

सरसों के लिए भुरभुरी मिट्टी बहुत ज्यादा अच्छी होती है। इसके लिए खरीफ की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करना जरुरी होता है। तथा इसके बाद तीन चार बार देसी हल से जुताई करना फसल की पैदावार के लिए अच्छा होता है। नमी

संरक्षण के लिए हमे पाटा लगाना चाहिए। इस तरह खेती की तयारी कर सकते है।

सरसों की खेती से लाभ –

सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है जिसका भारत की अर्थ व्यवस्था में एक विशेष स्थान है। सरसों कृषकों के लिए बहुत लोक प्रिय होती जा रही है क्यों कि इससे कम सिंचाई व लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है। इसकी खेती मिश्रित रूप में और बहु फसलीय फसल चक्र में आसानी से की जा सकती है।

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